संवैधानिक व्याख्या और उसका महत्त्व

 

संवैधानिक व्याख्या और उसका महत्त्व

  • ‘संवैधानिक व्याख्या’ का अभिप्राय संविधान के अर्थ या अनुप्रयोग से संबंधित विवादों को हल करने के प्रयास के रूप में संविधान के विभिन्न प्रावधानों की विवेचना करने से है ताकि प्रावधानों के दायरे को विस्तृत किया जा सके।
  • ज़ाहिर है कि संविधान कोई जड़ दस्तावेज़ नहीं होता, बल्कि वह एक गतिशील दस्तावेज़ है, जो समाज की बदलती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये समय के साथ विकसित और बदलता रहता है।
  • संसद द्वारा जिन कानूनों को पारित किया जाता है उन्हें आसानी से लागू किया जा सकता है और उतनी ही आसानी से उन्हें निरस्त भी किया जा सकता है जबकि संविधान की प्रकृति कानून से अलग होती है। संविधान का निर्माण भविष्य को ध्यान में रखकर किया जाता है और उसे निरस्त करना अपेक्षाकृत काफी कठिन होता है। इसीलिये मौजूदा परिस्थितियों के अनुसार, इसकी व्याख्या की जानी आवश्यक होती है।
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