डॉक्टर लाल कहते हैं, "मिट्टी में जैव तत्वों की लगभग पूरी तरह अनुपस्थिति से न सिर्फ़ फसलों की पैदावार कम हुई बल्कि इनमें 'माइक्रो न्यूट्रिएंट्स' भी घटे हैं.''

 डॉक्टर लाल 75 साल के हैं. 60 के दशक में वह पंजाब से अमेरिका चले गए थे. उनका इस बात में गहरा यक़ीन है कि मिट्टी, पौधों, पशुओं का स्वास्थ्य और पर्यावरण एक हैं. इन्हें अलग नहीं किया जा सकता.

उनका कहना है कि मिट्टी पर्यावरण के लिहाज से बेहद ज़रूरी काम करती है. जैसे बारिश के पानी को बरकरार रखने जैसा काम. यह भूजल को प्रदूषित होने से बचाने के लिए फ़िल्टर की तरह काम करती है.

मिट्टी में जैव पदार्थों का स्तर तीन से चार फ़ीसदी से होना चाहिए. लेकिन उत्तर भारत के राज्यों की मिट्टी में जैव पदार्थ .2 फ़ीसदी ही है.

डॉक्टर लाल कहते हैं, "मिट्टी में जैव तत्वों की लगभग पूरी तरह अनुपस्थिति से न सिर्फ़ फसलों की पैदावार कम हुई बल्कि इनमें 'माइक्रो न्यूट्रिएंट्स' भी घटे हैं.''

डॉक्टर लाल की रिसर्च बताती है कि बढ़िया यानी पोषक मिट्टी में फसल उगाना फ़ायदेमंद साबित होता है. क्योंकि कम ज़मीन में ही ज़्यादा फसल होती है. पानी भी कम लगता है. सिंचाई कम करने की ज़रूरत होती है इसलिए डीजल या बिजली की खपत भी कम होती है. इसके साथ ही रासायनिक खाद भी थोड़ा ही लगता है.

डॉक्टर लाल कहते हैं, "भारत में मिट्टी क्षरण एक गंभीर समस्या है. यहाँ की मिट्टी में जैव तत्व काफ़ी कम हैं. इसलिए जब बहुत बारिश होती है तो बाढ़ आ जाती है और जब बारिश नहीं होती है तो सूखा पड़ जाता है. "

संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन के मुताबिक़ उपजाऊ मिट्टी के तौर पर ऊपरी 2.5 सेंटीमेंट की परत तैयार होने में 500 साल लग जाते हैं लेकिन यह एक ही दशक में नष्ट हो सकता है.

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