डॉक्टर लाल इस बात पर ज़ोर देते हैं कि भारतीय किसान अब धान, गेहूँ, गन्ना, कपास और सोयाबीन जैसी परंपरागत फसलों के बजाय कुछ और दूसरी फसलें उगाएं.

 डॉक्टर लाल इस बात पर ज़ोर देते हैं कि भारतीय किसान अब धान, गेहूँ, गन्ना, कपास और सोयाबीन जैसी परंपरागत फसलों के बजाय कुछ और दूसरी फसलें उगाएं.

वो कहते हैं, ''पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश में सिर्फ धान, गेहूँ और गन्ना ही पैदा करना ठीक नहीं है. इन फसलों में काफ़ी पानी लगता है. धान की खेती बिहार जैसे राज्यों में होनी चाहिए. इन राज्यों के किसानों को फल, कपास और सब्जियाँ उगाने को प्रेरित करना चाहिए.''

डॉक्टर लाल का मानना है कि बहुत ज्यादा धान और गेहूँ उगाने से 'प्रोडक्शन सरप्लस' (ज़रूरत से ज़्यादा उत्पादन) हो जाता है और इससे भंडारण की समस्या आती है. नतीजन, 30 फ़ीसदी अनाज सड़ जाता है.

प्रोफे़सर गुलाटी भी फसलों की विविधता के पैरोकार हैं. वो चीन का उदाहरण देते हैं, जहाँ फसलों की विविधता ने पैदावार बढ़ाने मे मदद की है. वो कहते हैं कि बहुत अधिक पानी खींचने वाली धान की फसल पंजाब के प्राकृतिक संसाधनों को बर्बाद कर रही है.

पुष्पेंद्र सिंह को फसलों की विविधता से एतराज़ नहीं है लेकिन वो इनके लिए पर्याप्त एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य की माँग करते हैं.

यहाँ 'पर्याप्त' शब्द काफ़ी अहम है. उनका कहना है कि पंजाब के किसानों को फल, सब्ज़ियाँ और दूसरी फसलें पैदा करने के लिए कहा जा रहा है लेकिन किसान यह भी उम्मीद करता है कि जिस तरह से धान का एमएसपी मिलता है, इनके लिए भी ऐसे ही एमएसपी की गारंटी हो. तब तो विविधता का फ़ायदा है. वरना ऐसी फसलें पैदा करने का क्या लाभ?

पुष्पेंद्र सिंह कहते हैं, ''हम साल में 75 हज़ार करोड़ रुपये का तिलहन मँगाते हैं. हमने तिलहन और दलहन की खेती को बढ़ावा दिया है. ऐसा नहीं है कि हमने खेती में विविधता नहीं लाई है. इसी वजह से हमारे यहाँ दाल का उत्पादन बढ़ा है. विविधता तो करें लेकिन क्या सरकार ख़रीद की गारंटी लेगी? सरकार को ख़रीद पक्की करनी होगी. हमें इसके लिए मार्केट भी तो चाहिए.''

Today News

एक टिप्पणी भेजें

Your Answaer :

और नया पुराने