कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत में खेती की 40 फ़ीसदी ज़मीन की मिट्टी को नुकसान पहुँच चुका है और इसकी भरपाई में लंबा समय लग जाएगा.
मिट्टी के क्षरण से इसकी उपज क्षमता कम हो जाती है. अवैज्ञानिक तरीके से खेती, एक ही मिट्टी का बार-बार इस्तेमाल, पानी की बर्बादी, जंगलों की कटाई और रासायनिक खादों के बहुत अधिक इस्तेमाल से मिट्टी की ऊपरी परत को नुकसान पहुँचता है.
अमेरिका की ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी में काम करने वाले भारतीय मूल के मशहूर मृदा वैज्ञानिक डॉक्टर रतन लाल का कहना है कि मिट्टी की भी एक जिंदगी होती है और हमें इसे सँवारना पड़ता है.
इस साल का 'वर्ल्ड फू़ड प्राइज़' जीतने वाले डॉक्टर लाल को अब 'फू़ड लॉरेट' भी कहा जाता है.
उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा, "मिट्टी एक एक जीवित इकाई है. उपजाऊ मिट्टी में 'जीवित पदार्थ ' होते हैं हैं. जैसे-कीटाणु और जीवित ऑर्गेनिज्म. जैसे हम हैं, वैसी ही मिट्टी भी है. मिट्टी को भी भोजन चाहिए.''
मिट्टी को पशुओं के मल-मूत्र, खर-पतवार या खेत में छोड़ दी गई फसलों के सड़ने से भोजन मिलता है. हालाँकि खर-पतवार, खेत में छोड़ दी गई फसल या पराली जलाने से अच्छा है (पराली से दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या काफ़ी बढ़ जाती है) कि खेत को जोतते समय इन चीज़ों को मिट्टी में मिला दिया जाए."