कृषि वैज्ञानिकों के बीच इस बात की रज़ामंदी है कि भारतीय कृषि सेक्टर को बड़े पैमाने पर खेती के वैज्ञानिक तरीके, आधुनिक तकनीकी औजारों और डेटा का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि उत्पादकता बढ़े और फसलों को भरपूर माइक्रो न्यूट्रिएंट्स दिया जा सके.
मसलन-ज़मीन की सेटेलाइट मैपिंग हो, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता का विश्लेषण हो सके. इससे देश के बड़े हिस्से में यह पता चल सकेगा कि अलग-अलग जगहों की मिट्टी के हिसाब से कौन सी फसल मुफ़ीद है और इसमें कितना पानी लगेगा.
मानसून चक्र का विश्लेषण और भूजल स्तर का पता लगा लेने से किसान खेती के लिए बेहतर तरीके से तैयार हो सकेंगे.
डॉक्टर लाल कहते हैं कि यह एक प्रक्रिया है और अब समय आ गया है कि बड़े पैमाने पर आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल किया जाए.
उनका मानना है कि अगर ड्रोन तैनात किए जाएं और डेटा और सेटेलाइटों की मदद ली जाए तो न सिर्फ़ पैदावार दोगुनी होगी बल्कि फसलों की पोषण गुणवत्ता भी बढ़ेगी. इससे खेती पर निर्भर रहने वाली आबादी में भी कमी आएगी.
यूएन की एक हालिया स्टडी के मुताबिक अमेरिका में कुल आबादी का सिर्फ दो फ़ीसदी हिस्सा खेती के काम में लगा है.
सिर्फ़ दो फ़ीसदी आबादी इतना खाद्यान्न और दूसरे कृषि उत्पाद पैदा करती है यह दो अरब लोगों की ज़रूरत पूरी कर सकते हैं.