डॉक्टर लाल का मानना है कि जो प्रक्रिया अमेरिका ने दशकों पहले और चीन ने 1980 के दशक में शुरू की थी उसे शुरू करने की बारी अब भारत की है.
वो कहते हैं, ''अमेरिका में सिर्फ़ दो फीसदी आबादी सीधे खेती से जुड़ी हुई है, जबकि भारत में 60 से 70 फ़ीसदी आबादी खेती पर निर्भर है. यह बहुत बड़ी आबादी है. कहीं न कहीं से तो बदलाव शुरू करना ही होगा. खेती बहुत सारे लोगों का सहारा नहीं बन सकती. एक बड़ी आबादी को वैकल्पिक पेशा अपनाना ही होगा.''
भारत की कुल जीडीपी में कृषि और इसके सहायक सेक्टरों की 17 फ़ीसदी भागीदारी है. यह 2018-19 का आँकड़ा है. लगभग 60 फीसदी आबादी खेती पर ही निर्भर है.
वहीं, सर्विस सेक्टर भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 54.3 फ़ीसदी है, जबकि औद्योगिक सेक्टर की हिस्सेदारी 29.6 फ़ीसदी है. इसका मतलब यह है कि सर्विस और औद्योगिक सेक्टर में कृषि सेक्टर से कम लोग काम करते हैं लेकिन जीडीपी में उनका योगदान कहीं ज़्यादा है.
एक बार जब तकनीक का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने लगेगा और खेती में ज्यादा मशीनीकरण शुरू होने के साथ मिट्टी की क्वालिटी सुधरने लगेगी तो कम ज़मीन में ज़्यादा फसल पैदा होगी.
इसके साथ ही बेहतर जल प्रबंधन के इस्तेमाल से स्थिति में बदलाव होगा. अगर ऐसा हुआ तो इस सेक्टर को कम लोगों की जरूरत होगी. यानी खेती पर आबादी का जो बोझ है वह कम होगा.
डॉक्टर लाल का कहना है कि सरकार को एक समग्र सोच बना कर सुधार करना होगा. उनका मानना कि किसानों के कल्याण के लिए कृषि सुधार जरूरी हैं और इन्हें टाला नहीं जा सकता.
वो कहते हैं, ''किसान वैकल्पिक खेती करें और वैकल्पिक रोजगार अपनाएं, इसके लिए सरकार को ख़र्च करना होगा. इसके साथ ही औद्योगिक और सर्विस सेक्टर में भी सुधार करना होगा ताकि खेती में लगे लोगों को इनमें खपाया जा सके.''
डॉक्टर लाल चेतावनी देते हुए कहते हैं कि अगर हमने सुधारों की शुरुआत अभी से नहीं की तो यह आने वाली पीढ़ियों साथ नाइंसाफ़ी होगी.